रामपुर बुशहर, 4 मई मीनाक्षी
प्राकृतिक आपदाएं जैसे ओलावृष्टि, भारी वर्षा, सूखा या तूफान, भारतीय कृषि व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। विशेष रूप से ओलावृष्टि से किसानों और बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। एक तरफ उनकी सालभर की मेहनत और पूंजी दांव पर लग जाती है, वहीं दूसरी तरफ सरकार की ओर से मिलने वाला मुआवजा नाममात्र होता है, जो उनकी क्षति की भरपाई करने में नाकाफी है।
वर्तमान में कई राज्यों में सरकार द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि यदि फसल को 60 प्रतिशत या उससे अधिक नुकसान होता है, तभी मुआवजे का प्रावधान लागू होता है। इसके तहत हिमाचल प्रदेश में एक बीघा ज़मीन पर केवल 300 रुपये तक का मुआवजा मिलता है, जो आज के आर्थिक परिवेश में न तो बीज की कीमत निकाल पाता है, न खाद या कीटनाशक की, और न ही मजदूरी की भरपाई कर पाता है। इस तरह, किसान को न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक आघात भी झेलना पड़ता है।
बागवानी करने वाले किसानों की स्थिति और भी चिंताजनक होती है। फलों के बाग वर्षों की मेहनत और निवेश से तैयार होते हैं। ओलावृष्टि से एक ही दिन में तैयार फल धराशायी हो जाते हैं, जिससे भारी आर्थिक नुकसान होता है। न तो उनकी फसल मंडी तक पहुंच पाती है, और न ही उसका कोई बाजार मूल्य रह जाता है। ऐसे में उन्हें न केवल उस सीजन की आय से हाथ धोना पड़ता है, बल्कि अगले सीजन की तैयारियों के लिए संसाधन जुटाना भी मुश्किल हो जाता है।
किसानों व बागवानों का कहना है कि
सरकार द्वारा दी जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि न केवल अपर्याप्त है, बल्कि कई बार समय पर भी नहीं मिलती। कई बार किसान फॉर्म भरने, निरीक्षण, और अनुमोदन की जटिल प्रक्रिया से थक हार कर मुआवजे की आस ही छोड़ देते हैं। वहीं, मौसम विभाग की सटीक चेतावनियों की कमी और किसानों तक सूचनाओं के अभाव के चलते नुकसान की संभावना और बढ़ जाती है।
वही बता दे की
समस्या के समाधान के लिए सरकार को चाहिए कि वह मुआवजे की राशि यथार्थवादी बनाएं और उसे समय पर देने की गारंटी सुनिश्चित करें। इसके अलावा, मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, बीमा योजनाओं को सरल और पारदर्शी बनाना, तथा किसानों को अग्रिम प्रशिक्षण व तकनीकी सहायता देना भी आवश्यक है। साथ ही, स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए आपदा की स्थिति में तत्परता से राहत देने की व्यवस्था होनी चाहिए।