रामपुर बुशहर,8 दिसंबर मीनाक्षी
हिमाचल प्रदेश वन विभाग के रामपुर वन मंडल ने डांसा बीट, स्नै गाँव क्षेत्र में उत्पन्न मानव–वन्यजीव संघर्ष की स्थिति को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करते हुए एक महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। विभाग द्वारा एक मादा हिमालयी काले भालू को सफलतापूर्वक जीवित पकड़कर सुरक्षित रूप से पुनर्वास की प्रक्रिया संपन्न की गई।
यह अभियान हाल में कुछ दिनों तक संचालित किया गया, जिसमें वन विभाग की त्वरित प्रतिक्रिया टीम (RRT), पशु चिकित्सा दल तथा स्थानीय समुदायों के समन्वित प्रयासों की अहम भूमिका रही। इस अभियान की सफलता में स्थानीय नागरिकों द्वारा प्रदत्त सतत सहयोग एवं सहभागिता को विभाग हृदय से सराहता है।
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संघर्ष शमन हेतु अपनाई गई रणनीति
- जागरूकता एवं संवाद
रामपुर वन मंडल की RRT द्वारा स्थानीय नागरिकों एवं पंचायत प्रतिनिधियों के साथ नियमित संवाद स्थापित किया गया।
ग्रामीणों को जंगल से गुजरते समय अपनाए जाने वाले “क्या करें और क्या न करें” संबंधी दिशा-निर्देशों से अवगत कराया गया।
रात्रि समय गौशालाओं अथवा जंगल की ओर जाते समय पर्याप्त रोशनी रखने एवं सतर्कता बरतने की सलाह दी गई।
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- सक्रिय निगरानी एवं संयुक्त गश्त
संवेदनशील गांवों में RRT एवं फील्ड स्टाफ द्वारा निरंतर रात्रि गश्त की गई।
इसके साथ ही स्थानीय नागरिकों के सहयोग से संयुक्त रात्रि गश्त (Joint Night Patrolling) आयोजित की गई, जिससे सतत निगरानी सुनिश्चित हुई एवं आमजन में सुरक्षा की भावना सुदृढ़ हुई।
भालू को मानव आबादी की ओर बढ़ने से रोकने हेतु उसके अस्थायी ठिकानों की पहचान कर शोर, पटाखों तथा अन्य सुरक्षित प्रतिकारक उपायों के माध्यम से उसे वन क्षेत्र की ओर मोड़ा गया।
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- परंपरागत एवं आधुनिक तकनीकों का समन्वित उपयोग
संघर्ष नियंत्रण हेतु स्थानीय परंपरागत तरीकों का प्रयोग किया गया, जिनमें गोबर के उपलों में मिर्च जलाकर धुआँ देना (Natural Repellent Smoke) प्रमुख रहा, जिससे भालू को आबादी से दूर रखने में सहायता मिली।
इसके साथ-साथ आधुनिक तकनीकों जैसे ANIDERS (Automatic Night Intrusion Detection & Repellent System) उपकरणों का उपयोग किया गया, जिनके माध्यम से ध्वनि एवं प्रकाश आधारित अलर्ट जारी कर भालू की घुसपैठ को पहले ही रोकने का प्रयास किया गया।
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- तकनीकी हस्तक्षेप एवं ट्रैकिंग
भालू की गतिविधियों पर सतत निगरानी हेतु कैमरा ट्रैप स्थापित किए गए।
सुरक्षित पकड़ सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर पिंजरे लगाए गए तथा आवश्यकता अनुसार उनकी तैनाती बदली गई।
ग्रामीणों को भालू की उपस्थिति के प्रति तत्क्षण सचेत करने हेतु रणनीतिक बिंदुओं पर ध्वनि-अलर्ट प्रणालियाँ कार्यशील रखी गईं।
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- सुरक्षित पकड़ एवं पुनर्वास
संघर्ष प्रभावित क्षेत्र से मादा भालू को सफलतापूर्वक सुरक्षित रूप से पकड़ा गया।
उसे पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की निगरानी में शांत (Tranquilize) कर चिकित्सकीय परीक्षण किया गया।
पुनर्वास की समस्त प्रक्रिया नियमानुसार एवं पूर्ण सुरक्षा मानकों के अंतर्गत सफलतापूर्वक संपन्न की गई।
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यह अभियान हिमाचल प्रदेश में अपनी तरह का प्रथम उदाहरण है, जिसमें बार-बार मानव–वन्यजीव संघर्ष में संलिप्त एक स्वतंत्र रूप से घूमने वाली मादा हिमालयी काले भालू को जीवित पकड़कर सुरक्षित रूप से पुनर्वासित किया गया, तथा जिसमें स्थानीय समुदाय और वन विभाग के संयुक्त प्रयासों द्वारा पारंपरिक ज्ञान एवं आधुनिक तकनीक का सफल समन्वय प्रदर्शित हुआ।
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