शिमला,13 जुलाई मीनाक्षी
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद शिमला जिले के कोटखाई और कुमारसैन क्षेत्रों में वन भूमि पर अवैध कब्जों के खिलाफ प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी है। इस अभियान के तहत उन बागबानों के सेब, नाशपाती और चेरी के पेड़ काटे जा रहे हैं, जिन्होंने वर्षों से सरकारी जमीन पर कब्जा कर खेतीबाड़ी शुरू कर दी थी।
शनिवार को कोटखाई उपमंडल के चैंथला गांव में वन भूमि पर लगे करीब 100 सेब के पेड़ काटे गए। ये कदम हिमाचल हाईकोर्ट के उस आदेश के अनुपालन में उठाया गया, जिसमें वन भूमि से अवैध कब्जे हटाने को लेकर स्पष्ट निर्देश जारी किए गए थे। कोर्ट ने कहा था कि सरकारी और वन भूमि पर किसी भी तरह का अतिक्रमण न केवल गैरकानूनी है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी नुकसानदायक है।
प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार, चैंथला गांव में कुल 3800 सेब के पेड़ वन भूमि पर अवैध रूप से लगे हैं, जिन्हें चरणबद्ध तरीके से काटा जाएगा। यह कार्य वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की संयुक्त टीम द्वारा किया जा रहा है। कार्रवाई के दौरान भारी पुलिस बल की तैनाती की गई ताकि किसी प्रकार की अप्रिय स्थिति उत्पन्न न हो।
इसी तरह, कुमारसैन क्षेत्र के सराहन गांव में भी लगभग 320 पेड़ों को काटा गया है, जिनमें सेब, नाशपाती और चेरी के पेड़ शामिल हैं। यहां भी संबंधित जमीन वन विभाग की थी, जिस पर वर्षों से कुछ स्थानीय लोगों ने बगैर अनुमति के कब्जा कर बागवानी शुरू कर दी थी।
इस कार्रवाई को लेकर स्थानीय लोगों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ ग्रामीणों का कहना है कि वे दशकों से इन जमीनों पर खेती कर रहे थे और सरकार को चाहिए कि उन्हें पट्टे पर यह भूमि सौंप दे। वहीं, प्रशासन का कहना है कि बिना वैध दस्तावेजों के सरकारी भूमि पर कब्जा किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हिमाचल हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार राज्य भर में ऐसे सभी अतिक्रमणों की पहचान कर उन्हें हटाया जाना है। वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य में हजारों हेक्टेयर वन भूमि पर फलदार पेड़ लगाकर बागवानी की जा रही है, जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस प्रकार की गतिविधियां वन्यजीवों के आवास क्षेत्र को भी नुकसान पहुंचा रही हैं।
प्रशासन ने साफ किया है कि आगे भी इस तरह की कार्रवाइयां जारी रहेंगी और जिन लोगों ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा किया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट के आदेशों के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वन भूमि की सुरक्षा के लिए किसी भी प्रकार की लापरवाही अब नहीं बरती जाएगी।