शिमला, 27 अक्टूबर मीनाक्षी
हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल, शिमला स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) में इलाज करवाना इन दिनों मरीजों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रह गया है। प्रदेश के कोने-कोने से इलाज की उम्मीद लेकर आने वाले मरीजों को अस्पताल की ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) के बाहर चार से पांच घंटे तक लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ रहा है। इस दौरान न तो बैठने की पर्याप्त व्यवस्था उपलब्ध हैं।
हर दिन हजारों की संख्या में मरीज आईजीएमसी पहुंचते हैं, लेकिन बढ़ती भीड़ और सीमित संसाधनों के कारण अस्पताल प्रशासन के लिए सभी को समय पर सुविधा देना मुश्किल हो गया है। मरीजों का कहना है कि सुबह-सुबह ओपीडी की पर्ची कटवाने के लिए भी घंटों इंतज़ार करना पड़ता है। कई बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार मरीज खड़े-खड़े थक जाते हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती।
प्रदेश सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के दावे ज़मीन पर खोखले साबित हो रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं न होने के कारण ज्यादातर मरीज आईजीएमसी का रुख करते हैं, जिससे यहां का भार और बढ़ गया है। अस्पताल में डॉक्टरों की संख्या भी मरीजों के अनुपात में बहुत कम है।
मरीजों के साथ आए लोगों का कहना है कि इतनी दूर से सफर तय कर आने के बाद भी उन्हें इलाज के लिए पूरे दिन परेशान रहना पड़ता है। कई बार तो डॉक्टर से मिलने के लिए अगले दिन तक रुकना पड़ता है, जिससे गरीब मरीजों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ता जा रहा है।
लोगों का आरोप है कि सरकार केवल दावे कर रही है, लेकिन आईजीएमसी जैसे प्रमुख स्वास्थ्य संस्थान में व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। जनता ने मांग की है कि अस्पताल में भीड़ नियंत्रण, पंजीकरण प्रक्रिया में सुधार और मूलभूत सुविधाओं को तुरंत दुरुस्त किया जाए, ताकि प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में आने वाले मरीजों को राहत मिल सके।

