देव विदाई के संपन्न हुई बूढ़ी दिवाली धोगी बूढ़ी दिवाली में धोगी में नाटी की धूम दो दिवसीय मेले का विधिवत समापन, ढोल-नगाड़ों की थाप ने आनी दो दिवसीय धोगी बूढ़ी दिवाली का वीरवार को विधिवत समापन हुआ गया

कुल्लु, 24 नवम्बर



आनी दो दिवसीय धोगी बूढ़ी दिवाली का वीरवार को विधिवत समापन हुआ गया ।
क्षेत्र के आराध्य देव शमशरी महादेव व टोणा नाग की भावपूर्ण विदाई व मनमोहक नृत्य के बीच दिवाली की खूब रौनक देखने को मिली ।
क्षेत्र के आराध्य देव शमशरी महादेव हर वर्ष मार्गशीष की कृष्ण अमावस्या को अपने प्राचीन मंदिर धोगी में बूढ़ी दिवाली मनाने पहुंचते हैं, जिससे क्षेत्रवासियों में काफी उत्साह देखने को मिलता है। एक मान्यता अनुसार प्रभु राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापसी पर त्रेता युग का अंत हुआ, परंतु दिवाली सतयुग के अंत में बलिराज के समय से प्रचलित है। इसी अमावस्या से महाभारत का युद्ध शुरू हुआ जो 18 दिनों तक चला था, तभी से दिवाली विभिन्न जगहों पर मनाई जाती है।
प्राचीन रीति-रिवाजों अनुसार रात्रि के समय गांव के सैकड़ों लोगों ने वाद्य यंत्रों की धुनों पर मशाल जलाकर प्राचीन गीत, जतियां गाकर मंदिर की परिक्रमा करके समाज में फैली अंधकार रूपी बुराइयों को प्रकाश रूपी दुर्जय शस्त्र से दूर करने का संदेश देकर सुख शांति की कामना की।
दिन को मनमोहक नाटी ने सबका मन मोहा। पारम्परिक बेश-भूषा में सजकर लढागी नृत्य दल ने महिला मंडल समेत खूब रौनक लगाई ।
वहीं,बगड़ी की घास से बने बांड के साथ देव-दानव का एक भव्य युद्ध देखने को मिला जो समुद्र मंथन की याद दिलाता है। इसमें देवताओं की जीत हुई और समाज को अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराने का संदेश दिया गया।
शाम को गढ़पति शमशरी महादेव और टौणा नाग ने पारंपरिक डोल नगाड़ों की थाप और करनालों को चुन पर श्रद्धालुओं संग संयुक भावनामक नृत्य किया।
लोगों ने देवताओं के समक्ष शीश नवाकर क्षेत्र की सुख-समृद्धि की कामना की । वहीं इस धार्मिक कार्यक्रम में शमेशा,ठोगी,कराणा आदि के पुरोहितों ने भाग लिया

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